जो मिल ना सकेंगे कभी
वो कयूँ राह में मिलते है
नदी के दो किनारे भी
कयूँ साथ साथ चलते है
कयूँ क्षितिज में धरा गगन
मिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है
ना मिल पाने की कसक लिए
जो साथ साथ चल पाते है
वो लोग ही शायद
इसका मर्म समझ पाते है
कि क्यों पूजी जाती राधिका
किसलिए कृषण महिमा पाते है
नदी के दो किनारे ही कयूँ
नदी को बाँध पाते है
मिल जाते जो दो किनारे
क्या निर्मल नदियाँ बह पाती
खोकर अपनी अनवरत प्रवाह
वो सिर्फ जलाशय रह जाती
मिल पाते जो धरा गगन तो
मानवता का इतिहास न होता
खोकर वैभव श्रींगार सब
चिर विधवा धरती तब होती
Monday, March 15, 2010
अबला नारी
जिस देश में मिटटी को माँ कहते
बहती धारा को मईया
जहाँ रामचंद्र के पहले लोग
कहते है सीता मैया
जहाँ कैकेयी भी माँ कहलाती
कुंती भी पूजी है जाती
वहां नारी को अबला कहना
क्या उसका अपमान नहीं है
लक्ष्मी बन पिता घर आई
माँ बाप का मान बढाई
एक घर को रौशन कर वह
दूजे घर में कदम बढाई
दो संस्कृतियों की सृष्टी वो
दासी कैसे हो सकती हैजो दूजों की आवाज बनी वोमूक बधिर क्या हो सकती है
जिस पर दो संसार है निर्भर
वो बोझ किसी पर क्या होगी
दो परिवारों को जोड़ने वाली
सुन्दर कोमल फूल वो होगी
माना की कुछ नीच जनों ने
स्त्रीत्व का अपमान किया है
दहेज़ की बलिवेदी पर
जननी को कुर्बान किया है
उस ज्ञानी रावण ने भी जब
सीता पर कु दृष्टी डाला था
खोकर मान सम्मान सब
वैभव बांधव सब हारा था
आज भी जब कोई दुर्योधन
द्रौपदी की ओर जाता है
बिना कृषण के आज
उसका विनाश हो जाता है
दशों दिशाओं के समक्ष मै
अपनी बात सुनाता हूँ
"स्त्री तू धन्य है" कहकर
नतमस्तक हो जाता हूँ
बहती धारा को मईया
जहाँ रामचंद्र के पहले लोग
कहते है सीता मैया
जहाँ कैकेयी भी माँ कहलाती
कुंती भी पूजी है जाती
वहां नारी को अबला कहना
क्या उसका अपमान नहीं है
लक्ष्मी बन पिता घर आई
माँ बाप का मान बढाई
एक घर को रौशन कर वह
दूजे घर में कदम बढाई
दो संस्कृतियों की सृष्टी वो
दासी कैसे हो सकती हैजो दूजों की आवाज बनी वोमूक बधिर क्या हो सकती है
जिस पर दो संसार है निर्भर
वो बोझ किसी पर क्या होगी
दो परिवारों को जोड़ने वाली
सुन्दर कोमल फूल वो होगी
माना की कुछ नीच जनों ने
स्त्रीत्व का अपमान किया है
दहेज़ की बलिवेदी पर
जननी को कुर्बान किया है
उस ज्ञानी रावण ने भी जब
सीता पर कु दृष्टी डाला था
खोकर मान सम्मान सब
वैभव बांधव सब हारा था
आज भी जब कोई दुर्योधन
द्रौपदी की ओर जाता है
बिना कृषण के आज
उसका विनाश हो जाता है
दशों दिशाओं के समक्ष मै
अपनी बात सुनाता हूँ
"स्त्री तू धन्य है" कहकर
नतमस्तक हो जाता हूँ
Saturday, January 2, 2010
नव वर्ष में तेरे सपनो को
उन्मुक्त अनंत आकाश मिले
हर खवाब तुम्हारे पूरे हो
जगत में हर सम्मान मिले
कोई राह तुझे न वीरान मिले
तेरे राह को एक अंजाम मिले
चेहरे पे नहीं दिल में भी हो
ऐसी तुझे मुस्कान मिले
हर सुबह तेरी उम्मीद भरी
हर शाम जय जयकार मिले
हर रात तुम्हारी नींदों में
सपनो को नया आयाम मिले
बदल सके जो दुनिया को
ऐसी सोच का वरदान मिले
डिगा ना सके जिसको कोई
पर्वत जैसा अभिमान मिले
गर्व कर सके माँ बाप हरदम
ऐसा तुझे इनाम मिले
कर जाये आई आई टी इसी साल
सबका ऐसा आशीर्वाद मिले
उन्मुक्त अनंत आकाश मिले
हर खवाब तुम्हारे पूरे हो
जगत में हर सम्मान मिले
कोई राह तुझे न वीरान मिले
तेरे राह को एक अंजाम मिले
चेहरे पे नहीं दिल में भी हो
ऐसी तुझे मुस्कान मिले
हर सुबह तेरी उम्मीद भरी
हर शाम जय जयकार मिले
हर रात तुम्हारी नींदों में
सपनो को नया आयाम मिले
बदल सके जो दुनिया को
ऐसी सोच का वरदान मिले
डिगा ना सके जिसको कोई
पर्वत जैसा अभिमान मिले
गर्व कर सके माँ बाप हरदम
ऐसा तुझे इनाम मिले
कर जाये आई आई टी इसी साल
सबका ऐसा आशीर्वाद मिले
Sunday, October 4, 2009
Tuesday, August 25, 2009
To my all Students
कठिन है रास्ता राह कटीली,
तब भी तुमको चलना है |
किए जो वादे तुमने ख़ुद से ,
उसको आज निभाना है |
कही निकट है मंजिल तेरी ,
अब तो दौड़ लगाना है |
गिर पड़े तो उठ के भागो,
सबसे आगे जाना है |
कर के विश्वास ख़ुद पर अब ,
हर एक कदम बढ़ाना है |
मंजिल चाहे दूर हो कितनी ,
हर हालत में पाना है |
तब भी तुमको चलना है |
किए जो वादे तुमने ख़ुद से ,
उसको आज निभाना है |
कही निकट है मंजिल तेरी ,
अब तो दौड़ लगाना है |
गिर पड़े तो उठ के भागो,
सबसे आगे जाना है |
कर के विश्वास ख़ुद पर अब ,
हर एक कदम बढ़ाना है |
मंजिल चाहे दूर हो कितनी ,
हर हालत में पाना है |
Tuesday, August 18, 2009
कल और आज
कल तक जो अपना सा था
आज किसी का हो गया
जैसे रात अमावास में
चाँद कही है खो गया
छाँव में जिसके पलकर मैं
सब कुछ था जो भूल गया
जाने किस पतझड़ में आज
वो हरित है सूख गया
जिस पनघट ने मेरे कारण
जल सोता था खोल दिया
आज उसी पनघट पर मैं
कयूं प्यासा ही रह गया
रिश्तों की इस भीड़ को
जाने अब क्या हो गया
हरे भरे इस आँगन में
मैं आज पराया हो गया
आज किसी का हो गया
जैसे रात अमावास में
चाँद कही है खो गया
छाँव में जिसके पलकर मैं
सब कुछ था जो भूल गया
जाने किस पतझड़ में आज
वो हरित है सूख गया
जिस पनघट ने मेरे कारण
जल सोता था खोल दिया
आज उसी पनघट पर मैं
कयूं प्यासा ही रह गया
रिश्तों की इस भीड़ को
जाने अब क्या हो गया
हरे भरे इस आँगन में
मैं आज पराया हो गया
वो गाड़ी
वो गाड़ी जब सामने से गुजरती है
अन्तः करण पर दस्तक तब होती है
जो प्रेरणा देती है हर्षद बनने की
या किसी नटवर की याद दिलाती है
उतर कर धरातल पर सोचता हूँ
अन्दर के इंसान को खोजता हूँ
जो अब कही गुम हो रहा है
दूर अंधेरे में खो रहा है
इससे पहले की उसको तलाशता
आस्था की संजीवनी पिलाता
एक नई गाड़ी फिर गुजरती है
नई दस्तक भी होती है
वो इंसान गम हो जाता है
वो किसी आदमी में बदल जाता है
अन्तः करण पर दस्तक तब होती है
जो प्रेरणा देती है हर्षद बनने की
या किसी नटवर की याद दिलाती है
उतर कर धरातल पर सोचता हूँ
अन्दर के इंसान को खोजता हूँ
जो अब कही गुम हो रहा है
दूर अंधेरे में खो रहा है
इससे पहले की उसको तलाशता
आस्था की संजीवनी पिलाता
एक नई गाड़ी फिर गुजरती है
नई दस्तक भी होती है
वो इंसान गम हो जाता है
वो किसी आदमी में बदल जाता है
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