Monday, March 15, 2010

जाने कयूं ???

जो मिल ना सकेंगे कभी
वो कयूँ राह में मिलते है
नदी के दो किनारे भी
कयूँ साथ साथ चलते है

कयूँ क्षितिज में धरा गगन
मिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है

ना मिल पाने की कसक लिए
जो साथ साथ चल पाते है
वो लोग ही शायद
इसका मर्म समझ पाते है

कि क्यों पूजी जाती राधिका
किसलिए कृषण महिमा पाते है
नदी के दो किनारे ही कयूँ
नदी को बाँध पाते है

मिल जाते जो दो किनारे
क्या निर्मल नदियाँ बह पाती
खोकर अपनी अनवरत प्रवाह
वो सिर्फ जलाशय रह जाती

मिल पाते जो धरा गगन तो
मानवता का इतिहास न होता
खोकर वैभव श्रींगार सब
चिर विधवा धरती तब होती

अबला नारी

जिस देश में मिटटी को माँ कहते
बहती धारा को मईया
जहाँ रामचंद्र के पहले लोग
कहते है सीता मैया

जहाँ कैकेयी भी माँ कहलाती
कुंती भी पूजी है जाती
वहां नारी को अबला कहना
क्या उसका अपमान नहीं है

लक्ष्मी बन पिता घर आई
माँ बाप का मान बढाई
एक घर को रौशन कर वह
दूजे घर में कदम बढाई

दो संस्कृतियों की सृष्टी वो
दासी कैसे हो सकती हैजो दूजों की आवाज बनी वोमूक बधिर क्या हो सकती है

जिस पर दो संसार है निर्भर
वो बोझ किसी पर क्या होगी
दो परिवारों को जोड़ने वाली
सुन्दर कोमल फूल वो होगी

माना की कुछ नीच जनों ने
स्त्रीत्व का अपमान किया है
दहेज़ की बलिवेदी पर
जननी को कुर्बान किया है

उस ज्ञानी रावण ने भी जब
सीता पर कु दृष्टी डाला था
खोकर मान सम्मान सब
वैभव बांधव सब हारा था

आज भी जब कोई दुर्योधन
द्रौपदी की ओर जाता है
बिना कृषण के आज
उसका विनाश हो जाता है

दशों दिशाओं के समक्ष मै
अपनी बात सुनाता हूँ
"स्त्री तू धन्य है" कहकर
नतमस्तक हो जाता हूँ