Monday, March 15, 2010

अबला नारी

जिस देश में मिटटी को माँ कहते
बहती धारा को मईया
जहाँ रामचंद्र के पहले लोग
कहते है सीता मैया

जहाँ कैकेयी भी माँ कहलाती
कुंती भी पूजी है जाती
वहां नारी को अबला कहना
क्या उसका अपमान नहीं है

लक्ष्मी बन पिता घर आई
माँ बाप का मान बढाई
एक घर को रौशन कर वह
दूजे घर में कदम बढाई

दो संस्कृतियों की सृष्टी वो
दासी कैसे हो सकती हैजो दूजों की आवाज बनी वोमूक बधिर क्या हो सकती है

जिस पर दो संसार है निर्भर
वो बोझ किसी पर क्या होगी
दो परिवारों को जोड़ने वाली
सुन्दर कोमल फूल वो होगी

माना की कुछ नीच जनों ने
स्त्रीत्व का अपमान किया है
दहेज़ की बलिवेदी पर
जननी को कुर्बान किया है

उस ज्ञानी रावण ने भी जब
सीता पर कु दृष्टी डाला था
खोकर मान सम्मान सब
वैभव बांधव सब हारा था

आज भी जब कोई दुर्योधन
द्रौपदी की ओर जाता है
बिना कृषण के आज
उसका विनाश हो जाता है

दशों दिशाओं के समक्ष मै
अपनी बात सुनाता हूँ
"स्त्री तू धन्य है" कहकर
नतमस्तक हो जाता हूँ

6 comments:

  1. good work sir......

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  2. sir ji tTRUE MASTERPIECE POEM.
    brilliant rhyming nd grt uses of incidents
    u explained the truth of women in really remarkable and memorable way.
    awesome.heart touchin.
    and esp da examples nd the way in which they r rhymed dat shows us poetic prowess

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  3. one more thing u mst compile dem and shud try to publish it someday.your poems r very true nd nice

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  4. Sir badi feeling hai kavita me. Sach bataiye koi mili kya?

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  5. राम बिना सीता
    कृष्ण बिना रुक्मिणी
    गौतम बिना अहल्या
    दुष्यंत बिना शकुंतला
    भोगती रही अपनी क्रूर नियती
    जी ली उन्होने अधूरी जिन्दगी
    तब तुम्हारे बिना मै
    क्या जी नहीं सकती
    अपनी जिन्दगी ?

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