Monday, March 15, 2010

जाने कयूं ???

जो मिल ना सकेंगे कभी
वो कयूँ राह में मिलते है
नदी के दो किनारे भी
कयूँ साथ साथ चलते है

कयूँ क्षितिज में धरा गगन
मिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है

ना मिल पाने की कसक लिए
जो साथ साथ चल पाते है
वो लोग ही शायद
इसका मर्म समझ पाते है

कि क्यों पूजी जाती राधिका
किसलिए कृषण महिमा पाते है
नदी के दो किनारे ही कयूँ
नदी को बाँध पाते है

मिल जाते जो दो किनारे
क्या निर्मल नदियाँ बह पाती
खोकर अपनी अनवरत प्रवाह
वो सिर्फ जलाशय रह जाती

मिल पाते जो धरा गगन तो
मानवता का इतिहास न होता
खोकर वैभव श्रींगार सब
चिर विधवा धरती तब होती

14 comments:

  1. Waah waah. Bahut badhiya Sanjay bhai.

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  2. sanjay ji,
    you have given a new meaning to VIRAH as a foundation stone of MILAN.. great thought..
    मिल जाते जो दो किनारे
    क्या निर्मल नदियाँ बह पाती
    खोकर अपनी अनवरत प्रवाह
    वो सिर्फ जलाशय रह जाती

    मिल पाते जो धरा गगन तो
    मानवता का इतिहास न होता
    खोकर वैभव श्रींगार सब
    चिर विधवा धरती तब होती
    a really new dimension...!!!

    http://samvedanakeswar.blogspot.com

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  3. कयूँ क्षितिज में धरा गगन
    मिलते मिलते रह जाते है
    पूरे ना होंगे जो सपनें
    कयूँ आखों में बस जाते है

    Bahut khoob...antme sakaratmak jawab..wah!

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  4. अच्छी कविता । स्वागत है


    कृप्या वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दे टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।

    गुलमोहर का फूल

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  5. अच्छी कविता है ..! बधाई ...!

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  6. जाने क्यों ???????????
    कयूँ क्षितिज में धरा गगन
    मिलते मिलते रह जाते है
    पूरे ना होंगे जो सपनें
    कयूँ आखों में बस जाते है

    ना मिल पाने की कसक लिए
    जो साथ साथ चल पाते है
    वो लोग ही शायद
    इसका मर्म समझ पाते है

    सुन्दर अभिव्यक्ति
    सुमन’मीत’

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  7. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  8. कयूँ क्षितिज में धरा गगन
    मिलते मिलते रह जाते है
    पूरे ना होंगे जो सपनें
    कयूँ आखों में बस जाते है

    ना मिल पाने की कसक लिए
    जो साथ साथ चल पाते है
    वो लोग ही शायद
    इसका मर्म समझ पाते है

    Very true.....!!

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  9. sir very nice...v r waiting 4 a new 1

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  10. sir very nice...v r waiting 4 a new 1

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