जो मिल ना सकेंगे कभी
वो कयूँ राह में मिलते है
नदी के दो किनारे भी
कयूँ साथ साथ चलते है
कयूँ क्षितिज में धरा गगन
मिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है
ना मिल पाने की कसक लिए
जो साथ साथ चल पाते है
वो लोग ही शायद
इसका मर्म समझ पाते है
कि क्यों पूजी जाती राधिका
किसलिए कृषण महिमा पाते है
नदी के दो किनारे ही कयूँ
नदी को बाँध पाते है
मिल जाते जो दो किनारे
क्या निर्मल नदियाँ बह पाती
खोकर अपनी अनवरत प्रवाह
वो सिर्फ जलाशय रह जाती
मिल पाते जो धरा गगन तो
मानवता का इतिहास न होता
खोकर वैभव श्रींगार सब
चिर विधवा धरती तब होती
Monday, March 15, 2010
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Waah waah. Bahut badhiya Sanjay bhai.
ReplyDeleteबहुत खूब, अच्छा है
ReplyDeletereally very nice
ReplyDeletesanjay ji,
ReplyDeleteyou have given a new meaning to VIRAH as a foundation stone of MILAN.. great thought..
मिल जाते जो दो किनारे
क्या निर्मल नदियाँ बह पाती
खोकर अपनी अनवरत प्रवाह
वो सिर्फ जलाशय रह जाती
मिल पाते जो धरा गगन तो
मानवता का इतिहास न होता
खोकर वैभव श्रींगार सब
चिर विधवा धरती तब होती
a really new dimension...!!!
http://samvedanakeswar.blogspot.com
कयूँ क्षितिज में धरा गगन
ReplyDeleteमिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है
Bahut khoob...antme sakaratmak jawab..wah!
अच्छी कविता । स्वागत है
ReplyDeleteकृप्या वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दे टिप्पणी करने में सुविधा होती है ।
गुलमोहर का फूल
अच्छी कविता है ..! बधाई ...!
ReplyDeleteजाने क्यों ???????????
ReplyDeleteकयूँ क्षितिज में धरा गगन
मिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है
ना मिल पाने की कसक लिए
जो साथ साथ चल पाते है
वो लोग ही शायद
इसका मर्म समझ पाते है
सुन्दर अभिव्यक्ति
सुमन’मीत’
Really nice sanjay!!!
ReplyDeletesuperb poem sir
ReplyDeleteइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteकयूँ क्षितिज में धरा गगन
ReplyDeleteमिलते मिलते रह जाते है
पूरे ना होंगे जो सपनें
कयूँ आखों में बस जाते है
ना मिल पाने की कसक लिए
जो साथ साथ चल पाते है
वो लोग ही शायद
इसका मर्म समझ पाते है
Very true.....!!
sir very nice...v r waiting 4 a new 1
ReplyDeletesir very nice...v r waiting 4 a new 1
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