कल तक जो अपना सा था
आज किसी का हो गया
जैसे रात अमावास में
चाँद कही है खो गया
छाँव में जिसके पलकर मैं
सब कुछ था जो भूल गया
जाने किस पतझड़ में आज
वो हरित है सूख गया
जिस पनघट ने मेरे कारण
जल सोता था खोल दिया
आज उसी पनघट पर मैं
कयूं प्यासा ही रह गया
रिश्तों की इस भीड़ को
जाने अब क्या हो गया
हरे भरे इस आँगन में
मैं आज पराया हो गया
Tuesday, August 18, 2009
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mast.............jio bahiya jiyo.....
ReplyDeletekeep writting